कोरोना
कोरोना के
बढ़ते रोगी को देखकर पूरा विश्व और सभी चिकित्सा संस्थाए चिंतित है ओर दिन रात
कोरोना रोग का बेहतर निदान के उपाय और चिकित्सा सुविधा के लिए प्रयास कर रहे है ,उसी कड़ी में आयुष चिकित्सा पध्दति
भी विगत वर्ष की भांति अपना पूरा सहयोग करने में तत्पर है और सभी आयुष चिकित्सक
आयुष मंत्रालय के निर्देशाअनुसार अपनी सेवाए दे रहे है
इसलिए हमारे
लिए और जरूरी है की हम अपने ज्ञान से विश्व को कोरोना जैसी महामारी से लड़ने में
सहयोग करे और बेहतर चिकित्सा पर विचार विमर्श करे ,आयुर्वेद शास्त्र से कोरोना जैसी
बीमारी के को समझना और उसकी रोकथाम के उपाय और चिकित्सा के बारे में काफी तरह से
सोच सकते है , उन्ही को ध्यान में रखकर आयुष मंत्रालय ने कोरोना से बचाव निर्देश
दिए है जोकि काफी कारगर साबित हो रहे है
निदान
आयुर्वेद में कोरोना जैसी बीमारी के लिए आचार्यो ने
जनपदोंध्वंस का वर्णन किया है और लक्षण के अनुसार ज्वर चिकित्सा का वर्णन किया है
आचार्य चरक ने जनपदोंध्वंस का कारण अधर्म और जल वायु देश
काल का विकृत होना (Environmental pollution), माना है
आगन्तुज व्याधि
संक्रामक व्याधि
दोष-दुष्य
आचार्य चरक अनुसार ज्वर के काफी लक्षण
कोरोना व्याधि से मिलते है अत: ज्वर के सामान कोरोना में रसवह स्रोतस व्याधि, प्राणवह
स्त्रोतस व्याधि बोल सकते है
जैसा की हमें मालूम है की कोरोना के ज्यादातर रोगी
हमें पिछले वर्ष और इस वर्ष मार्च – अप्रेल माह में देखने को मिली और ये समय
आयुर्वेद के अनुसार वसंत ऋतु का होता है जिसमे की मन्दाग्नि और कफ दोष प्रधान रोग
होते है
वसन्ते [निचितः श्लेष्मा दिनकृद्भाभिरीरितः|
कायाग्निं बाधते रोगांस्ततः प्रकुरुते बहून्||२२|| च.सू. 6
रोकथाम उपाय
आयुर्वेद में स्वस्थ के स्वास्थ्य की रक्षा और
आतुर के रोग निवारण की बात कही है अत: हमें स्वाथ्य पुरुष रहने के लिए अनेक उपाय
बताये है
प्रयोजनं चास्य स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणमातुरस्य विकारप्रशमनं च| च.सू. 30
सद्वृत पालन में आचार्य चरक ने कहा है, मुख को
बिना ढके जृम्भां, क्षवथुं , हास्यं
नानावृतमुखोजृम्भां क्षवथुं हास्यं वा प्रवर्तयेत् च.सू. 8
प्रात: सांयस्नान और मल मार्गो की शुध्दि
द्वौ कालावुपस्पृशेत्, मलायनेष्वभीक्ष्णं पादयोश्च वैमल्यमादध्यात् च.सू. 8
दिनचर्या का पालन
गुर्वम्लस्निग्धमधुरं दिवास्वप्नं च वर्जयेत्
व्यायामोद्वर्तनं
सुखाम्बुना
शौचविधिं च.सू. 6
भय मुक्त रहे
विषादो रोगवर्धनानां च.सू. 25
चिकित्सा
चिकित्सा का
प्रथम सिद्धांत निदान परिवर्जन है, अत: हमें निदान से दूर रहना चाहिए
भीड़ से दूर (Physical Distancing)
नाक,मुख ढक
कर रखे (Wear Face Mask)
स्वच्छता रखे
(Proper Hygiene)
आचार्य चरक
अनुसार महामारी में हमे औषध का भण्डारण कर लेना चाहिए ताकि रोगी की संख्या बढने पर
चिकित्सा कर सके
कोरोना व्याधि में हमें मुख्यतया ज्वर चिकित्सा ओर रसवह स्त्रोतस दुष्य सिध्दांत को प्रयोग करना चाहिए
ज्वर पूर्वरूप चिकित्सा – लंघन ,
अपतर्पण
लङ्घनं स्वेदनं कालो यवाग्वस्तिक्तको रसः||१४२||
पाचनान्यविपक्वानां दोषाणां तरुणे ज्वरे च.चि. 3
ज्वर आदौ लंघन प्रोक्त,ज्वर मध्ये तु पाचनं
ज्वरान्ते भेषज दधात ज्वर मुक्ते विरेचनम (योगरत्नाकर)
विषाद की
अवस्था में हर्षण चिकित्सा करनी चाहिए
औषध
आयुष
मंत्रालय के दिए निर्देश का पालन करना चाहिए
Recommended
Measures
I General
Measures
1. Drink
warm water throughout the day.
2. Daily
practice of Yogasana, Pranayama and meditation for at least 30 minutes as
advised by Ministry of AYUSH (#YOGAatHome #StayHome #StaySafe)
3. Spices
like Haldi (Turmeric), Jeera (Cumin), Dhaniya (Coriander) and Lahsun (Garlic)
are recommended in cooking.
II
Ayurvedic Immunity Promoting Measures
1. Take
Chyavanprash 10gm (1tsf) in the morning. Diabetics should take sugar free
Chyavanprash.
2. Drink
herbal tea / decoction (Kadha) made from Tulsi (Basil), Dalchini (Cinnamon),
Kalimirch (Black pepper), Shunthi (Dry Ginger) and Munakka (Raisin) - once or
twice a day. Add jaggery (natural sugar) and / or fresh lemon juice to your
taste, if needed.
3. Golden
Milk- Half tea spoon Haldi (turmeric) powder in 150 ml hot milk - once or twice
a day.
III
Simple Ayurvedic Procedures
1. Nasal
application - Apply sesame oil / coconut oil or Ghee in both the nostrils (Pratimarsh
Nasya) in morning and evening.
2. Oil pulling therapy- Take 1 table spoon
sesame or coconut oil in mouth. Do not drink, Swish in the mouth for 2 to 3
minutes and spit it off followed by warm water rinse. This can be done once or
twice a day.
IV During
dry cough / sore throat
1. Steam
inhalation with fresh Pudina (Mint) leaves or Ajwain (Caraway seeds) can be
practiced once in a day.
2. Lavang (Clove) powder mixed with natural
sugar / honey can be taken 2-3 times a day in case of cough or throat
irritation. 3. These measures generally treat normal dry cough and sore throat.
However, it is best to consult doctors if these symptoms persist.
निष्कर्ष
अत: हमें
रोकथाम हेतु निम्न आवश्यक बाते ध्यान रखनी चाहिए
Physical Distancing
Proper face mask
Maintain hygiene
Don’t panic
Improve Immunity
Increase gastric fire
Regular exercise and yoga
Preventive medicine
Note-
आजकल अनेक आयुर्वेदिक चिकित्सक कोरोना चिकित्सा हेतु अनेक रस
औषधि का प्रयोग कर रहे है जिनमे की स्वर्ण युक्त औषधि रामबाण के सामान कारगर साबित
हो रही है
परिचय
आचार्य चरक ने वातरक्त का वर्णन चरक चिकित्सा में अलग अध्याय (वातशोणित अध्याय) के साथ किया है उसकी सम्प्रति में बताया है की निदान सेवन से वात प्रकुपित के कारण रक्त दूषित होता ओर दूषित रक्त वात का मार्ग अवरुध्द करता है, अत: इसी सम्प्रति को ध्यान रखकर वातरक्त की चिकित्सा निर्देशित की गयी है
चिकित्सा सिध्दांत
इसके अंतर्गत हम निम्न बातो पर ध्यान देंगे
निदान परिवर्जन
हमारे आचार्यो ने चिकित्सा के प्रथम सिध्दांत में निदान परिवर्जन चिकित्सा बताया है, इसके अनुसार हमें जो वातरक्त के निदान है उनका सेवन बंद करना चाहिए, यह सिध्दांत सभी रोगों के साथ सभी चिकित्सा पध्दति लागू होता है
सम्प्राप्ति विघटन
आयुर्वेद के साथ- साथ आधुनिक चिकित्सा पध्दति भी ये सिध्दांत से पूर्णतया प्रभावित है , संप्राप्ति को ही आधुनिक चिकित्सा पध्दति में Pathophysiology कहते है, इसमें जो रोग चक्र चलता है उसको रोकना या तोडना होता है
रक्तमोक्षण
आचार्य चरक ने वातरक्त में सर्वप्रथम रोगी बल अनुसार रक्तमोक्षण निर्देशित किया है
तत्र मुञ्चेदसृक् शृङ्गजलौकःसूच्यलाबुभिः|प्रच्छनैर्वा सिराभिर्वा यथादोषं यथाबलम् च.चि. 29/36
जैसा की हम जानते है रक्तमोक्षण करने के अनेक साधन है ओर हर साधन का दोष अनुसार प्रयोग भी निर्देशित है
सामान्य नियम
वात दोष – श्रृंग
पित दोष – जलौका
कफ दोष- अलाबू
दोशाधिक्य – सिरावेध प्रच्छान
उसी नियम को ध्यान में रखकर चरक ने दोष अनुसार लक्षण ओर रक्तमोक्षण साधन बताये है
रुग्दाहशूलतोदार्तादसृक् स्राव्यं जलौकसा|शृङ्गैस्तुम्बैर्हरेत् सुप्तिकण्डूचिमिचिमायनात् च.चि. 29/37
दोष |
रोग लक्षण |
रक्त मोक्षण साधन |
वात दोष |
सुप्ति |
श्रंग |
पित दोष |
कण्डू |
रुग दाह शूल तोद |
कफ दोष |
कण्डू |
अलाबू |
दोष आधिक्य |
स्थानान्तर गमन (देशाद्देशं व्रजत् ) |
सिराभिः प्रच्छनेन |
देशाद्देशं व्रजत् स्राव्यं सिराभिः प्रच्छनेन वा| अङ्गग्लानौ न तु स्राव्यं रूक्षे वातोत्तरे च यत् च.चि. 29/38
जब दोष की मात्रा शरीर में ज्यादा हो जाती है तो दोष एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमन करते है अत: इस अवस्था में हमे रक्तमोक्षण सिरावेध या प्रच्छान से करना चाहिए, इसके बाद आचार्य ने बताया की किस अवस्था तक रक्तमोक्षण करना है ओर किस अवस्था में नही करना है, क्योंकि आयुर्वेद के सामान्य सिध्दांत अनुसार धातु क्षय से वात वृध्दि होती है , अत: वात प्रधान पुरुष और जिनके अंग में ग्लानी हो उनमें रक्त मोक्षण निषेध है
संसोधन
संसोधन चिकित्सा भी आयुर्वेद के सामान्य नियमानुसार वातरक्त में निर्देशित है
सामान्य नियम
वात दोष – स्नेहन , मृदु विरेचन, बस्ति
पित दोष – विरेचन
कफ दोष – वमन
जैसा हम जानते है की वातरक्त में वात दोष के साथ-2 रक्त भी दूषित है ओर रक्त पित का समधर्मी है अत: हमें वात ओर पित हेतु संसोधन चिकित्सा करनी चाहिए
विरेच्यः स्नेहयित्वाऽऽदौ स्नेहयुक्तैर्विरेचनैः|रूक्षैर्वा मृदुभिः शस्तमसकृद्वस्तिकर्म च||४१||
सेकाभ्यङ्गप्रदेहान्नस्नेहाः प्रायोऽविदाहिनः च.चि. 29/41
इसलिए इसमें स्नेह युक्त विरेचन, मृदु वमन , बस्तिकर्म निर्देशित किया है , साथ ही स्थानिक चिकित्सा के रूप में दाह रहित सेक अभ्यंग ओर प्रदेह बताये है
भेद अनुसार चिकित्सा
बाह्यमालेपनाभ्यङ्गपरिषेकोपनाहनैः|विरेकास्थापनस्नेहपानैर्गम्भीरमाचरेत् च.चि. 29/43
वातरक्त के गंभीर ओर उत्तान 2 भेद के अनुसार अगर चिकित्सा को समझे तो बताया है की उत्तान त्वक ओर रक्त धातु आश्रित है जबकि गंभीर उतरोतर धातु आश्रित है इसलिए उत्तान में स्थानिक चिकित्सा / बाह्र परिमार्जन चिकित्सा के बारे में बताया है ओर गंभीर में संसोधन (विरेचन,बस्ती ) निर्देशित है
दोष अनुसार चिकित्सा में अगर वात प्रधान है तो स्नेह प्रयोग (पान, अभ्यंग,अंजन, बस्ति )पित प्रधान में पित शोधन ओर शामक उपाय (विरेचन, घृतपान, शीतल क्रिया),कफ प्रधान अवस्था में कफ शोधक /शामक उपाय (मृदु वमन, लंघन )
योग